सारस न्यूज टीम, किशनगंज।
जिले में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी मरीजों का डेटा संग्रह किया जाएगा। साथ ही ऐसे मरीजों का टैगिंग भी किया जाएगा। सिविल सर्जन डॉक्टर कौशल किशोर ने बताया कि शिशु मातृ मृत्यु को कम करने या शून्य करने के लिए प्रति महीने दो दिन प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व आश्वासन कार्क्रम का आयोजन होगा। कार्यक्रम का उद्देश्य हाई रिस्क प्रेग्नेंट महिलाओं का बेहतर देखभाल एवं सुविधा देना है। एनएससी जांच के क्रम में ही हाई रिस्क का पता चल जाएगा। उसी दिन मरीज को रिपोर्ट भी उपलब्ध करवा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक गाइडलाइन तैयार किया गया है।
गाइडलाइन में मरीज का वजन, पल्स, बीपी, हीमोग्लोबिन, बच्चे का डेवलपमेंट आदि प्रमुख जांच कराना आवश्यक किया गया है। साथ ही मरीज को दी जाने वाली पूर्जा की टैगिंग भी किया जाना है। उन्होंने बताया कि हाई रिस्क प्रेग्नेंसी केस वाले पूर्जा को रेड एवं सामान्य को ग्रीन टैगिंग किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एएनसी के दौरान 10 प्रतिशत केस हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का होता है। लेकिन सही तरीके से जांच नहीं होने के कारण सही केयर नहीं हो पाता है।
ऐसी महिलाओं को खतरा अधिक :
महिला चिकित्सिक डॉक्टर शबनम यास्मिन ने कहा कि हाई रिस्क प्रेग्नेंसी महिला को अधिक खतरा होता है। उन्होंने कहा कि 19 वर्ष से कम और 35 वर्ष से अधिक आयु की गर्भवती महिलाओं को इसका खतरा होता है। कम उम्र की गर्भावस्था और अधिक उम्र में गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान खान-पान का ध्यान न रखना और तंबाकू और धूम्रपान का सेवन, खराब जीवनशैली , नशीली दवाओं के प्रयोग से गर्भावस्था की जटिलता बढ़ जाती है। गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, किडनी संबंधी रोग, मोटापा, एचआईवी, कैंसर जैसी बीमारियां हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का कारण बनती हैं।
ये हैं लक्षण
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाली महिलाओं को लगातार तेज बुखार, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, पेट में दर्द, भ्रूण के हिलने-डुलने में कमी, पेट के अल्सर, रक्तस्राव, त्वचा पर दाने, सूजन, वजन बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान, तंबाकू, शराब से बचना चाहिए। नियमित स्वास्थ्य जांच करवाना चाहिए।
