विजय कुमार गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
वो बातें अलग थी
मुस्कराते हुए लम्हों कि
बातें अलग थी,
तुझसे वो मेरी पहली
मुलाकातें अलग थी।
वक़्त भी गुजर रहा है
शाम भी ढ़ल रही है,
पर तेरे हाथों में हाथ था
वो रातें अलग थी।
यादों का सिलसिला तो य़ह
चलता है चलता रहेगा,
मुलाकातों में जो होती थी
वो बाते अलग थी।
सफ़र वो हसीन था
जब साथ तुम हमारे थे,
चलते तो अब भी है
पर वो राहें अलग थी।
मेरा दर्द थम जाता था
तेरे पहलु में आकर,
सुकून कहाँ ढूंढे हम
वो बाहें अलग थी।
ख्वाब कितना हसीन था
जो साथ तुम्हारे देखे थे,
नींद खुली तो जाना
मुझसे तेरी राहें अलग थी।
बिंदु अग्रवाल