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भारत- नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा मकर संक्रांति पर्व,15 जनवरी की रात तक रहेगा वरियान योग।

विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

माघ कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला मकर संक्रांति पर्व आज सोमवार को भारत- नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र ठाकुरगंज गलगलिया, भद्रपुर, चुरली एवं सटे बंगाल में श्रद्धापूर्वक और हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। पर्व के लिए जोर शोर से लोगों ने तैयारियां कर ली। जिसके लिए मकर संक्रांति की पूर्व संध्या शनिवार व रविवार को लोग ठाकुरगंज,गलगलिया के बाजारों में खरीदारी के लिए निकले। गुड़, तेल, गजक के साथ साथ दान पुण्य के लिए लोगों ने अन्य सामग्री भी खरीदी। पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के लोगों की भीड़ अत्यधिक देखी गई। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष सामानों के दामों में इजाफा होने के बाद भी लोग अपने सार्मथ्य के अनुसार लाई, चूड़ा, ढूंढा आदि सामानों की खरीददारी कर रहे हैं। मकर संक्रांति के दिन मूंगफली, गुड़, तिल आदि का विशेष महत्व है। इस दिन दान पुण्य महत्वपूर्ण माना गया है। मकर संक्रांति पर्व पर गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है।

हिन्दू समाज में उत्तरायणी पर्व का विशेष महत्व:

गलगलिया के आचार्य श्री अनन्त पंडित जी ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है। इसलिए इस दिन को उत्तरायणी पर्व के तौर पर भी जाना जाता है। उन्होंने बताया हिन्दू समाज में उत्तरायणी पर्व का विशेष महत्व होता है। इस दिन गंगा स्नान और दान पुण्य करना काफी शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति पर्व के बाद शुभ और मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। इस दिन लोग बच्चों के उपनयन संस्कार, नए कार्य का शुभारंभ भी करते हैं।

मकर संक्रांति का विशेष पुण्यकाल:

मकर संक्रांति का पर्व अधिकतर लोग 14 जनवरी को ही मना लेते हैं। मगर वैदिक पंचांग के अनुसार इसबार रवियोग 15 जनवरी 2024 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। वहीं 77 साल बाद इस वर्ष मकर संक्रांति पर रवि योग के साथ वरियान योग का संयोग रहेगा, और वरियान योग 14 जनवरी को रात 02 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर 15 जनवरी की रात 11 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। 

मकर संक्रांति के बाद खरमास की समाप्ती:

मकर संक्रांति (खिचड़ी) का पर्व काफी व्यापक ढंग से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाते है, जिससे खरमास का समय समाप्त हो जाता है और आगे शुभ कार्य होने लगते है। इस पर्व को भी अलग-अलग प्रकार से मनाया जाता है। गंगा स्नान के बाद पंडितों को चूड़ा, लाई, चावल, गुड़, तिलवा आदि दान दिया जाता है। सुबह घरों में चूड़ा, गुड़, दही, चोखा आदि खाया जाता है तो शाम को खिचड़ी खाई जाती है।

तिल और गुड़ के लड्डू  बनाने की परंपरा:

मकर संक्रांति पर रसोई में तिल और गुड़ के लड्डू बनाए जाने की परंपरा है। इसके पीछे बीती कड़वी बातों को भुलाकर मिठास भरी नई शुरुआत करने की मान्यता है। वैज्ञानिक आधार की बात करें तो तिल के सेवन से शरीर गर्म रहता है और इसके तेल से शरीर को भरपूर नमी भी मिलती है।

संक्रांति उपरांत बसंत मौसम का आगमन:

देखा जाए को यह सर्दी के मौसम के बीतने का सूचक है और मकर संक्रांति पर दिन व रात बराबर अवधि के माने जाते हैं। इसके बाद से दिन लंबा होने लगता है और मौसम में गर्माहट होने लगती है। इसके बाद कटाई या बसंत के मौसम का आगमन मान लिया जाता है।

नेपाल में मकर-संक्रान्ति:

नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। नेपाल में मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

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