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खोरीबाड़ी व नक्सलबाड़ी के ईदगाहों व मस्जिदों में अदा की गई अलविदा की नमाज, रोजेदारों ने मांगी अमन-चैन की दुआ।

सारस न्यूज़, सिलीगुड़ी।

माह-ए-रमजान के आखिरी जुमे पर 5 अप्रैल शुक्रवार को भारत -नेपाल सीमांत सीमावर्ती क्षेत्र के खोरीबाड़ी व नक्सलबाड़ी में अलविदा की नमाज अदा की गई। नमाज अदा करने वालों में जवान और बुजुर्ग ही नहीं छोटे बच्चे भी शामिल थे। इस दौरान सड़कों पर काफी चहल पहल दिखाई पड़ी। प्रशासनिक पदाधिकारी भीड़ वाले स्थलों पर भ्रमण करते दिखाई पड़े। अलविदा की नमाज के बाद बच्चों में ईद पर्व पर कपड़े, जूते चप्पल आदि खरीदने की खुशी देखी गई। नमाज के बाद देर शाम तक सामानों, सेवई, रेडिमेड कपड़ों की दुकानों पर खरीदारी करने को भीड़ देखी गई। जानकारी मिली कि 10 अप्रैल बुधवार की रात चांद देखने के बाद 11 अप्रैल गुरुवार को ईद मनाई जाएगी। अलविदा की नमाज के दौरान क्षेत्र की मस्जिदों में रोजेदारों की भीड़ उमड़ी। नक्सलबाड़ी , खोरीबाड़ी प्रखंड के डागुजोत सहित विभिन्न मस्जिदों में हजारों लोगों ने जुमा की नमाज अदा की। नमाज के दौरान लोगों ने अल्लाह से मुल्क, कौम व मिल्लत की दुआ मांगी। लोगों के हाथ इबादत के लिए उठे तो उनके मुंह से सिर्फ शांति की बात निकली। अलविदा नमाज के दौरान राेजेदारों में इस बात का भी मलाल था कि पवित्र माह अब समाप्त हो रहा है। लोगों के चेहरे पर पाक महीने की समाप्ति का गम था।

अलविदा का अर्थ रमजान का रुखसत होना।

रमजान के आखिरी जुमे को अलविदा के नाम से पुकारा जाता है। इसके बाद कोई जुमा नहीं आता, इसलिए आखिरी जुमे को पढ़ी जानेवाली नमाज अलविदा की नमाज कहलाती है। वैसे तो इस्लाम में हर जुमे की अहमियत है, लेकिन रमजान का आखिरी जुमा होने के चलते यह खास हो जाता है। एक तरह से यह इस बात का संकेत भी होता है कि रमजान का जो एक महीना इबादत के लिए मिला था, उसके खत्म होने में चंद दिन बाकी है। नमाज के बाद विभिन्न मसजिदों में मौलाना ने तकरीर कर फितरे, जकात व शबे कद्र के बारे में विस्तार से बताया। मौलाना ने कहा कि फितरे की रकम हर हाल में ईद की नमाज से पहले अदा कर देना चाहिए। जकात के लिए इसकी कोई बंदिश नहीं है। लेकिन यह जरूरी है कि जो लोग हैसियत वाले हैं वे अपनी रकम का ढाई फीसदी जकात निकालेंगे। उन्होंने कहा कि पूरे रमजान में इबादतों का दौर रहता है।

रमजान का पाक महीना आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है।

नक्सलबाड़ी जामा मस्जिद के मौलाना मोहम्मद दाराजुद्दीन ने बताया रमजान का पाक व मुकद्दस महीना आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है। ऐसे में मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को रमजान में निश्चित तौर पर रोजा रखना चाहिए। रोजा में अपने मन व इंद्रियों पर नियंत्रण रख कर जो भी सच्चे मन से अल्लाह की इबादत करता है उसे बरकत जरूर नसीब होती है। अल्लाह ने अपने बंदों को यह बतला दिया है कि तुम नमाज पढ़ोगे तो मैं उसका सवाब दूंगा। हज करो तो उसका अज्र दूंगा, जकात दोगे तो उसका नेकी दूंगा लेकिन जब तुम रोजे के इम्तिहान में कामयाब हो जाओ तो मैं खुद ही तुम्हारा हो जाऊंगा।

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