टेढ़ागाछ प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत भोरहा पंचायत के वार्ड नंबर 2 पुराना टेढ़ागाछ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आजादी के सात दशक बाद भी गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। बताते चलें कि गांव भारत नेपाल सीमा पर अवस्थित है। लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है।
ज्ञात हो कि इस गांव पर रेतुआ नदी का कहर जारी है। विगत दिनों भी दर्जनों घर नदी में विलीन गए थे। लेकिन अब तक इस गांव को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस गांव में जाने के लिए ना तो सड़क है, न ही स्कूल है, ना आंगनवाड़ी केंद्र है, ना ही स्वास्थ्य केंद्र है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को हम लोग भी टैक्स का भुगतान करते हैं। लेकिन सरकार एवं जनप्रतिनिधि व जिला पदाधिकारी को हम लोग वर्षों से आवेदन दे दे कर थक हार कर बैठ चुके हैं। लेकिन आज तक सरकार की महत्वाकांक्षी योजना इस गांव में नसीब नहीं हुई है। आज भी समस्या जस की तस बनी हुई है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है बरसात के दिनों में यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसे चारपाई के सहारे लगभग 2 किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य मार्ग तक आना पड़ता है उसके बाद टेढ़ागाछ, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, पटना एवं अन्य जगह ले जाना पड़ता है। स्थानीय ग्रामीण भागवत प्रसाद सिंह, मोतीलाल सिंह, उत्तम चंद्र सिंह, गया प्रसाद सिंह, नेवालाल सिंह, ब्रह्मदेव प्रसाद सिंह, शंकर लाल दास, शनिचरा बहरदार सहित अन्य ग्रामीणों ने व्यवस्था मे सुधार की मांग की है।
सारस न्यूज, टेढ़ागाछ।
टेढ़ागाछ प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत भोरहा पंचायत के वार्ड नंबर 2 पुराना टेढ़ागाछ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आजादी के सात दशक बाद भी गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। बताते चलें कि गांव भारत नेपाल सीमा पर अवस्थित है। लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है।
ज्ञात हो कि इस गांव पर रेतुआ नदी का कहर जारी है। विगत दिनों भी दर्जनों घर नदी में विलीन गए थे। लेकिन अब तक इस गांव को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस गांव में जाने के लिए ना तो सड़क है, न ही स्कूल है, ना आंगनवाड़ी केंद्र है, ना ही स्वास्थ्य केंद्र है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को हम लोग भी टैक्स का भुगतान करते हैं। लेकिन सरकार एवं जनप्रतिनिधि व जिला पदाधिकारी को हम लोग वर्षों से आवेदन दे दे कर थक हार कर बैठ चुके हैं। लेकिन आज तक सरकार की महत्वाकांक्षी योजना इस गांव में नसीब नहीं हुई है। आज भी समस्या जस की तस बनी हुई है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है बरसात के दिनों में यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसे चारपाई के सहारे लगभग 2 किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य मार्ग तक आना पड़ता है उसके बाद टेढ़ागाछ, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, पटना एवं अन्य जगह ले जाना पड़ता है। स्थानीय ग्रामीण भागवत प्रसाद सिंह, मोतीलाल सिंह, उत्तम चंद्र सिंह, गया प्रसाद सिंह, नेवालाल सिंह, ब्रह्मदेव प्रसाद सिंह, शंकर लाल दास, शनिचरा बहरदार सहित अन्य ग्रामीणों ने व्यवस्था मे सुधार की मांग की है।
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