बीरबल महतो, सारस न्यूज़, ठाकुरगंज।
रविवार को शिक्षकों के सम्मान के रूप में नगर सहित प्रखंड क्षेत्र के नन्हें-मुन्हें बच्चों द्वारा शिक्षक दिवस के अवसर पर महान शिक्षक, राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्मरण किया गया। साथ ही अपने विद्यालय संस्थानों के गुरुजनों का भी सम्मान किया। इस मौके पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के तैलीय चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित व पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया। वहीं इस मौके पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं ने अपने-अपने गुरुजनों को गिफ्ट भी दिए। इस मौके पर स्कूल व शिक्षण संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवनी पर प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर नगर के न्यूकॉलोनी स्थित शिक्षा संस्थान केंद्र के निदेशक शिबानी दत्ता ने डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन के संबंध में सबों को संबोधित करते हुए कहा कि वे एक विद्वान शिक्षक थे। उन्होंने अपने जीवन के चालीस साल एक शिक्षक के रूप में भारत के भविष्य को बेहतर बनाने में लगाए। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 05 सितंबर सन् 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरुतनी गॉव में हुआ था। वे आर्थिक रूप से काफी कमजोर परिवार से थे और शुरू से ही पढाई-लिखाई में काफी रूचि रखते थे। डॉ. राधाकृष्णन की आरंभिक शिक्षा तिरूवल्लुर के गौड़ी स्कूल और तिरूपति मिशन स्कूल में हुई थी। इसके बाद में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने पढाई पूरी की। 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर छात्रवृत्ति भी प्राप्त की। डॉ. राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए राधाकृष्णन को वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। शिक्षक जयदीप बनर्जी ने बताया कि भारत को स्वतंत्रता मिलने के समय जवाहरलाल नेहरू ने राधाकृष्णन से विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करने का आग्रह किया। 1952 तक वह राजनयिक रहे, जिसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपति के पद पर नियुक्त किया गया। 1962 में राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद डॉ. राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हो गया। वहीं शिक्षक सूरज सिंह ने बताया कि जब डॉ. राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने, तो कुछ मित्र और पूर्व छात्र उनसे मिलने आए। उन्होंने सर्वपल्ली राधाकृष्णन से उनका जन्मदिवस भव्य तरीके से मनाने की अनुमति मांगी। इस पर डॉ राधाकृष्णन ने कहा कि मेरे जन्मदिन को अलग तरीके से मनाने के बजाय, यदि 5 सितंबर को शिक्षकों द्वारा किए गए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य, समर्पण और उनकी लगन-मेहनत को सम्मानित करते हुए मनाएं तो मुझे और अधिक ख़ुशी होगी और गर्व होगा। इसके बाद से देश में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू हुई, जो आज तक जारी है।
