विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया, किशनगंज।
गलगलिया विभिन्न शिक्षण संस्थानों, सार्वजनिक पूजा पंडालों एवं घरों में शनिवार को बसंत पंचमी का त्योहार धूमधाम के साथ मनाते हुए बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा का विधान किया गया। इसको लेकर सुबह से मां सरस्वती की विभिन्न गीतों से गांव के गली-मुहल्ले गूंजायमान होने लगा। कोविड के कारण विद्यालय बंद रहने से केवल शिक्षक ही सरस्वती पूजा का आयोजन किये। वहीं गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों एवं निजी दरवाजों पर भी इसका धूम रहा। हालांकि सभी जगह कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए ही इस त्योहार को मनाया गया।
पुराना बसस्टैंड एवं गलगलिया घोषपाड़ा के स्थानों में बने पूजा पंडाल लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहा। स्थानीय पुलिस प्रशासन क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाये रखने में मुस्तैद दिखे। पारंपरिक रूप से यह त्यौहार बच्चों की शिक्षा के लिए काफी शुभ मना गया है इसलिए देश के अनेक भागों में इस दिन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का श्रीगणेश भी किया जाता है। सरस्वती को कला की भी देवी माना जाता है इसलिए गलगलिया से सटे बंगाल में कला क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा के साथ पुस्तकों एवं कलम की पूजा भी की।

ऋतुओं में मैं बसंत हूँ
बसंत ऋतुओं का राजा माना जाता है। यह पर्व बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। इस अवसर पर प्रकृति के सौंदर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है। वसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है की ऋतुओं में मैं बसंत हूं।
त्योहार को लेकर प्रचलित कथा
भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उस संसार में देखे थे तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता था। उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी की वाणी न हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने उदासी तथा मलिनता को दूर करने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक और माला धारण की हुई जीवों को वाणी दान की, इसलिए उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि देने वाली है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है।

